जगदीप धनखड़ के उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद प्रदेश की राजनीति भी गरमा गई हैं। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने बीजेपी पर किसान कौम (जाटों) की अनदेखी करने का आरोप लगाया हैं।
कांग्रेस पहले भी जाटों को लेकर बीजेपी पर भेदभाव करने और उन्हें हाशिए पर रखने के आरोप लगाती आई है। अब उप राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने के बाद प्रदेश से बीजेपी में किसी भी प्रमुख पद पर कोई जाट नेता नहीं बचा हैं।
ऐसे में प्रदेश में जाटों को साधना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती होगा। जबकि कांग्रेस में संगठन की कमान जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा के पास है।
भाजपा संगठन में प्रदेश के इन जाट नेताओं को जगह मिली हुई है।
जाटों की कैबिनेट में 16 और संगठन में 13 फीसदी हिस्सेदारी
वर्तमान में भजनलाल कैबिनेट में जाटों की हिस्सेदारी 16 फीसदी के आस-पास है। मंत्रिपरिषद में दो कैबिनेट और दो राज्यमंत्री जाट कोटे से शामिल है। इनमें से किसी का भी प्रभाव प्रदेश में नहीं है।
कैबिनेट मंत्रियों में पीएचईडी मंत्री कन्हैयालाल चौधरी और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा शामिल हैं। वहीं राज्यमंत्रियों में झाबर सिंह खर्रा को स्वतंत्र प्रभार और विजय सिंह को राज्यमंत्री का दर्जा है।
संगठन में प्रदेश पदाधिकारियों में देखें तो जाटों का प्रतिनिधित्व करीब 13 प्रतिशत के आस-पास हैं। संगठन में भी 4 जाट नेताओं को जगह मिली हुई है।
इनमें दो उपाध्यक्ष सीआर चौधरी और ज्योति मिर्धा शामिल हैं। वहीं प्रदेश महामंत्री के पद पर संतोष अहलावत और मंत्री के पद पर विजेंद्र पूनियां हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले सरकार ने सीआर चौधरी को किसान आयोग का अध्यक्ष भी बनाया था। फिलहाल उनके पास दोनों पद हैं।
केवल इन दोनों नेताओं को राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ हैं।
बीजेपी के लिए जाटों को साधना होगी बड़ी चुनौती
अब प्रदेश राजनीति में जाटों को साधना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती होगी। पार्टी उन्हें केंद्रीय संगठन से लेकर प्रदेश संगठन में अहम पद दे सकती हैं। वर्तमान में केंद्रीय संगठन में प्रदेश से किसी भी पद पर कोई जाट नेता नहीं हैं।
बीजेपी में फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव पेंडिंग है। नया राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद उनकी नई कार्यकारिणी में प्रदेश के जाट नेताओं को अहम पद दिया जा सकता हैं। इसमें पहले से ही सतीश पूनिया को राष्ट्रीय महामंत्री बनाए जाने की चर्चाएं भी चल रही हैं।
इसी तरह से बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ की नई टीम का भी जल्द ऐलान होने की संभावना है। इसमें भी प्रमुख पदों पर जाट नेताओं को तरजीह दी जा सकती हैं।
कैबिनेट और राजनीतिक नियुक्ति में ज्यादा मौका
पार्टी कैबिनेट विस्तार में भी जाट मंत्रियों की संख्या बढ़ा सकती हैं। अभी जहां 4 जाट मंत्री हैं। वहीं विस्तार में दो मंत्री जाट कोटे से ओर बनाए जा सकते हैं। वहीं कैबिनेट में जाट मंत्रियों को प्रमुख मंत्रालय देकर भी उन्हें साधा जा सकता हैं।
इसी तरह से वर्तमान में प्रदेश में केवल 8 बोर्ड और आयोग में ही सरकार ने राजनीतिक नियुक्तियां की हैं। आने वाले समय में इन राजनीतिक नियुक्तियों में भी जाटों को तरजीह देने की संभावनाएं बढ़ गई हैं।
मोदी मंत्रिमंडल में वर्तमान में केवल भागीरथ चौधरी जाट कोटे से राज्यमंत्री बने हुए हैं। भविष्य में इसमें भी बढ़ोतरी देखी जा सकती हैं।
विधानसभा में साथ मिला, लोकसभा में दूरी दिखी
प्रदेश में अभी तक हुए विधानसभा और लोकसभा चुनावों के आकड़ों पर नजर डाले तो बीजेपी को विधानसभा चुनाव में जाटों का पूरा साथ मिला है। हालांकि लोकसभा चुनावों में जाट पार्टी से छिटके नजर आए।
इसकी वजह है कि पार्टी जाट बाहुल्य सीटें, सीकर, झुंझुनूं, चूरू, श्रीगंगानगर और बाड़मेर हार गई। बाड़मेर लोकसभा का चुनाव तो खुले तौर पर प्रदेश की दो प्रमुख जातियों में बंटकर रह गया। विधानसभा उप चुनाव में पार्टी ने झुंझुनूं सीट जरूर जीती।
