एमबीबीएस कोर्स के बीच एक एमबीबीए छात्रा का एक्सीडेंट होने से उसकी देखने की सौ फीसदी क्षमता खत्म होने पर हाईकोर्ट ने दिव्यांगजन आयुक्त और नेत्र विशेषज्ञ को शामिल कर एम्स दिल्ली, की एक कमेटी बनाने के लिए कहा है। वहीं कमेटी को कहा है कि वह देखे की प्रार्थिया अपनी बाकी पढ़ाई कैसे पूरा कर सकती है। कमेटी की रिपोर्ट सही आए तो उसे एमबीबीएस कोर्स पूरा करने की मंजूरी दी जानी चाहिए। जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह निर्देश अंकिता सिंगोदिया की याचिका पर दिया।
हालांकि हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह आदेश विशेष परिस्थितियों में दिया है। इसलिए यह 40 फीसदी से अधिक दिव्यांग वाले अन्य अभ्यर्थियों के लिए मिसाल नहीं होगा। अदालत ने प्रार्थिया की सराहना करते हुए कहा कि पूरी तरह से दिव्यांग होने के बाद भी वह एमबीबीएस करना चाहती है, जबकि शपथ पत्र में वह कह चुकी है कि एमबीबीएस की डिग्री मिलने के बाद वह डॉक्टर के तौर पर काम नहीं करेगी। अधिवक्ता एसपी शर्मा ने बताया कि अगस्त, 2014 में प्रार्थिया ने एमबीबीएस कोर्स में प्रवेश लिया था। लेकिन दो साल बाद अप्रैल, 2017 में एक रोड एक्सीडेंट में उसकी सौ फीसदी दृष्टि खत्म हो गई। जून, 2020 में एक मेडिकल बोर्ड ने उसे कोर्स पूरा करने की अनुमति देने की सिफारिश की, लेकिन दूसरे बोर्ड ने कहा कि वह डॉक्टर का कर्तव्य प्रभावी ढंग से नहीं निभा पाएगी। जिस पर जनवरी, 2021 में उसे कोर्स पूरा करने से मना कर दिया। इसे हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि वह सहयोगी के जरिए अपना एमबीबीएस कोर्स पूरा करना चाहती है।
ऐसे कई डॉक्टर्स हैं, जो पूरी तरीके से दिव्यांग होने के बाद भी इस पेशे में हैं। वह कोर्स पूरा करने के बाद बतौर डॉक्टर के तौर पर काम भी नहीं करेगी, लेकिन वह यह कोर्स पूरा करना चाहती है। जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि चालीस फीसदी से अधिक दिव्यांग अभ्यर्थी का एमबीबीएस में प्रवेश नहीं हो सकता। एमबीबीएस कोर्स में सर्जरी और प्रैक्टिकल प्रशिक्षण जरूरी है, लेकिन शत फीसदी दृष्टिहीन व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं है। अदालत ने दोनों पक्षों को सुनकर प्रार्थिया की पढ़ाई करने की संभावना के लिए एक कमेटी बनाने का निर्देश दिया।
