बहुचर्चित एएनएम भंवरीदेवी हत्याकांड मामले में हाईकोर्ट के आदेश के 21 माह बीत जाने के बावजूद पेंशन नहीं दिये जाने पर दायर अवमानना याचिका में जस्टिस रेखा बोराणा की कोर्ट ने जोधपुर सीएमएचओ सहित अन्य को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। कोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर आवश्यक कागजात दाखिल करने का निर्देश दिया है। इसके बाद मामले में सुनवाई की अगली तारीख तय की जाएगी।
जोधपुर के बोरूंदा निवासी याचिकाकर्ता साहिल पेमावत की ओर से अधिवक्ता यशपाल खिलेरी ने अवमानना याचिका दायर की है। इसमें बताया गया कि हाईकोर्ट की सिंगल बैंच का 12 जनवरी 2024 का फैसला होने के 21 माह बाद भी उन्हें न तो पेंशन दी गई है और न ही पेंशन परिलाभ का भुगतान किया गया है।
कोर्ट ने कहा था दो बेटी व एक बेटे को दें पूरे परिलाभ
हाईकोर्ट की एकल पीठ ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए स्पष्ट आदेश दिए थे कि मृतका भंवरी देवी के तमाम बकाया सेवा परिलाभ, देय पेंशन एवं अन्य सभी सेवानिवृत्ति परिलाभ की गणना कर पूरे एरियर का भुगतान मय ब्याज भंवरी देवी के वारिसान बेटे साहिल और दोनों पुत्रियों अश्विनी और सुहानी को चार माह के भीतर दिया जाए। चिकित्सा विभाग को यह भी छूट दी गई थी कि वह मृतका भंवरी देवी की मृत्यु संबंधी आवश्यक सूचना और सर्विस बुक के लिए अधीनस्थ न्यायालय में आवेदन कर प्राप्त कर सकेगा।
डेथ सर्टिफिकेट का बहाना
याचिकाकर्ताओं की शिकायत के अनुसार, जोधपुर सीएमएचओ कार्यालय ने भंवरी देवी का मृत्यु प्रमाण पत्र नहीं होने का बहाना बनाकर मामले को अटका रखा है। जबकि, तत्कालीन जोधपुर सीएमएचओ ने ही 16 जनवरी 2012 को आदेश जारी कर भंवरी देवी को मृत मानकर उसे सेवा से पृथक करने का आदेश जारी किया था। इसके अलावा, चिकित्सा विभाग ने 28 फरवरी 2012 को अनुकंपा नियुक्ति आदेश जारी कर भंवरीदेवी के बेटे साहिल को अनुकंपा नियुक्ति भी दी थी।
विभाग भंवरी को मृत मानने को तैयार नहीं!
एडवोकेट खिलेरी के अनुसार वर्तमान जोधपुर सीएमएचओ कार्यालय भंवरीदेवी को मृत मानने को तैयार नहीं है और न ही अधीनस्थ न्यायालय से भंवरीदेवी की मूल सेवा पुस्तिका लेने के लिए कोई कार्रवाई की है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, एक तरफ भंवरी देवी की हत्या का केस ट्रायल कोर्ट में वर्ष 2011 से चल रहा है और दूसरी तरफ मृत्यु नहीं मानकर पेंशन व सेवानिवृत्ति परिलाभ नहीं देना चिकित्सा विभाग की गंभीर असंवेदनशीलता है।
भंवरीदेवी हत्याकांड की पृष्ठभूमि
भंवरीदेवी चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता/एएनएम पद पर कार्यरत थीं। 1 सितंबर 2011 को भंवरी देवी अपनी बेची गई कार का पैसा लेने बिलाड़ा गई थी, लेकिन वापस नहीं लौटी। उनके पति अमरचंद ने गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज कराई थी। बाद में सीबीआई जांच में पता चला कि भंवरी देवी की हत्या कर उनके अवशेष इंदिरा गांधी कैनाल में बहा दिए गए।
सीबीआई ने तत्कालीन राज्य सरकार के कैबिना मंत्री और एक विधायक सहित करीब 13 मुलजिमों को गिरफ्तार किया था। सीबीआई ने भंवरी देवी की 1 सितंबर 2011 को हत्या होना मानकर मुलजिमों के विरुद्ध हत्या और अन्य धाराओं में चालान पेश किया, जो फौजदारी प्रकरण अधीनस्थ न्यायालय में विचाराधीन है। मुलजिमों में मृतका भंवरी देवी के पति अमरचंद को भी धारा 120-बी भारतीय दंड संहिता का सह-अपराधी माना गया था।
कोर्ट ने दिए थे स्पष्ट निर्देश
चिकित्सा विभाग की ओर से पेश जवाब में बताया गया था कि मृतका भंवरी देवी के नॉमिनी में उसके पति अमरचंद का नाम होने और उसके इस हत्याकांड में सह अपराधी होने के कारण नियमानुसार पेंशन व अन्य सेवानिवृत्ति परिलाभ नहीं दिए जा सकते। हाईकोर्ट एकलपीठ ने इस तर्क को खारिज करते हुए मृतका के पति अमरचंद को देय पेंशन परिलाभ का हिस्सा उसके विरुद्ध विचाराधीन आपराधिक प्रकरण में बरी होने की स्थिति में ही बाद में दिए जाने का आदेश दिया था।
