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नदबई के पूर्व विधायक जोगिंदर अवाना की ‘पार्टी यात्रा’ राजनीति या अवसरवाद

जयपुर।राजनीति में सिद्धांतों और स्थिरता की बात करने वाले नेता जब खुद बार-बार पार्टी बदलते हैं, तो यह सवाल उठता है। क्या राजनीति अब केवल अवसरवाद का नाम बन गई है। नदबई के पूर्व विधायक जोगिंदर अवाना इसका जीवंत उदाहरण बनते जा रहे हैं।

स्थानीय मतदाता, जिन्होंने कभी जोगिंदर अवाना को क्षेत्र की समस्याओं का समाधान कर्ता समझा था, अब भ्रम और निराशा में हैं। हर चुनाव से पहले उनकी पार्टी बदलने की प्रवृत्ति ने यह साफ कर दिया है कि उनका ध्यान जनता की सेवा से अधिक राजनीतिक भविष्य को सुरक्षित करने में है। आज के समय में जब देश को सशक्त और प्रतिबद्ध नेतृत्व की आवश्यकता है, तब अवाना जैसे नेता एक “घुमंतु” की छवि पेश कर रहे हैं। जो हर पांच साल में अपनी राजनीतिक विचारधारा बदलते हैं। क्या यह बदलाव उनकी विचारधारा का परिष्कार है, या केवल सत्ता के लिए एक और छलावा।

पार्टी बदलने की राजनीति
जोगिंदर अवाना ने 2018 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर नदबई विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी जॉइन की और 2023 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन बीजेपी के जगत सिंह से हार गए। हार के बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और 12 अप्रैल 2025 को राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) में शामिल हो गए और हाल ही में आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ने अवाना को पार्टी ने बड़ी जिम्मेदारी देते हुए राजस्थान प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया, जहां उन्होंने कहा कि वे चौधरी चरण सिंह के प्रति निष्ठा रखते हैं। यह पहला अवसर नहीं है जब अवाना ने पार्टी बदली है। ऐसा लगता है जैसे उनकी राजनीति की दिशा सिद्धांतों से नहीं, सत्ता की समीकरणों से तय होती है।

कानूनी विवाद और क्षेत्रीय विरोध
2023 में नदबई विधानसभा क्षेत्र में महापंचायत ने अवाना को क्षेत्र में नहीं घुसने देने का फरमान सुनाया था। लोगों का आरोप था कि उन्होंने सेवर पंचायत समिति की 23 ग्राम पंचायतों को तोड़कर उच्चैन में शामिल करने के लिए कलेक्टर और राजस्व मंत्री को पत्र लिखा था, जिससे लोग नाराज हो गए थे। इसके अलावा अवाना पर 42 लाख रुपये की धोखाधड़ी का आरोप भी लगा है, जिसमें उनके निजी सहायक ने बेटियों को रीट परीक्षा में पास करवाने का झांसा देकर पैसे लेने का दावा किया है। इनके अलावा और भी कई मामलों में उन पर आरोप लगाए गए हैं।

आखिर जोगिंदर अवाना कहां रुकेंगे
अब जनता जानना चाहती है कि आखिर जोगिंदर अवाना का राजनीतिक लक्ष्य क्या है। क्या वे किसी पार्टी के प्रति वफादार रह पाएंगे या हर चुनाव से पहले उनका अगला पड़ाव कुछ और होगा। राजनीति में अगर भरोसा ही न बचे, तो नेता और आमजन के बीच की दूरी और भी गहरी हो जाती है। शायद अवाना को अब यह सोचना चाहिए कि वे इतिहास में किस रूप में याद किए जाएंगे, एक जनसेवक या एक अवसरवादी।

Kashish Bohra
Author: Kashish Bohra

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