जयपुर में रिटायर्ड पैरा कमांडो हिम्मत सिंह राठौड़ ने माउंट एवरेस्ट पर भारतीय तिरंगा लहराया है। उन्होंने एवरेस्ट की चोटी से बच्चों को आत्महत्या न करने का मैसेज भी दिया। हिम्मत माउंट एवरेस्ट की पहली विंडो (चढ़ाई करने वाले ग्रुप) में शामिल थे, इस ग्रुप में 50 लोगों ने हिस्सा लिया। इनमें से सिर्फ 40 ने ही अपनी मिशन पूरा किया। वहीं, 4 लोगों की मौत भी हो गई थी। इसमें जयपुर के राकेश बिश्नोई भी शामिल थे।
हिम्मत सिंह राठौड़ ने बताया- 9 मई को टीम ने माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की शुरुआत की। फर्स्ट विंडो का अर्थ सबसे पहले चढ़ाई की शुरुआत करना होता है। जब शुरुआत की तब तापमान रात में -35 डिग्री से भी नीचे जा रहा था।
रात 1 बजे टीम बेस कैंप से रवाना हुई। 10 मई को दोपहर 12 बजे तक टीम कैंप 2 तक पहुंच गई। यह दूरी सामान्यतः दो दिनों में तय की जाती है, लेकिन हमने कुछ ही घंटों में यह सफर तय कर लिया। तेज तूफानी हवा और प्रतिकूल मौसम के कारण टीम को कैंप 2 में तीन दिन रुकना पड़ा।

40 लोगों की टीम ने चोटी की ओर अंतिम चढ़ाई की
उन्होंने बताया- 13 मई को टीम कैंप 3 और 14 मई को कैंप 4 पहुंची। उसी रात 14 मई को 11 बजे माउंट एवरेस्ट की चोटी की ओर अंतिम चढ़ाई शुरू की गई। इस बार फर्स्ट विंडो के कारण रास्ता पूरी तरह बना नहीं था। ऊपर मौसम बेहद कठिन था। इस स्थिति में चढ़ाई करना आत्मघाती हो सकता था, लेकिन हमने मजबूत इरादों के साथ आगे बढे़। लगभग 40 लोगों की टीम ने चोटी की ओर चढ़ाई की, लेकिन रास्ते में कई हादसे हो गए।
फिलिस्तीनी कमांडो की भी जान चली गई
भारत के सुब्रता घोष जैसे अनुभवी पर्वतारोही की चढ़ाई के दौरान मृत्यु हो गई। एक फिलिस्तीनी कमांडो की भी जान चली गई। तीसरी कैजुअल्टी भी इसी प्रयास में हुई। मेरे जयपुर के साथी राकेश बिश्नोई जो कैंप 3 से कैंप 4 तक हमारे साथ थे, बेहद मजबूत और साहसी थे। कैंप 4 में ऑक्सीजन की भारी कमी और खराब मौसम के कारण उनका निधन हो गया। यह हमारी टीम के लिए गहरा आघात था।

सबसे पहले शुब्रता घोष ने झंडा लहराया
हिम्मत ने बताया- हम भारतीयों में से सबसे पहले माउंट एवरेस्ट के हिलेरी स्टेप पर शुब्रता घोष ने झंडा फहराया था। इसी चोटी पर उनकी मृत्यु भी हो गई। जब मैं वहां पहुंचा तो वहां भारी धुंध छाई हुई थी। बादलों से पूरा माहौल घिरा हुआ था। हमारे शेरपा को भी डर लग रहा था।
शेरपा ने मुझे कहा- तुम्हारा ऑक्सीजन कम है, नीचे चले जाओ, नहीं तो मर जाओगे। मैं डर नहीं रहा था, लेकिन शेरपा की बात मानकर 15 मिनट वहां रूकने के बाद नीचे की तरफ निकल गया। मैंने सबसे पहले वहां भारतीय झंड़ा लहराया। फिर राजस्थान की धरा का मैसेज देते हुए वीर भोग्य वसुंधरा लिखे शब्दों का पोस्टर लहाराया। यहां से मैंने स्टूडेंट्स को मैसेज देते हुए एक स्पेशल पोस्टर भी लहराया, जिस पर लिखा था। विद्यार्थी आत्महत्या न करें। अपने आप को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है। पापा बूढ़े हो रहे हैं, जिम्मेदार बनो, जिद्दी नहीं।

नाहरगढ़ पर करता था तैयारी, हफ्ते में 2 दिन लगातार 20 किलोमीटर ट्रेकिंग
हिम्मत ने बताया- पिछले एक साल से मैं तैयारी कर रहा था। हफ्ते में दो दिन लगातार 20-20 किलोमीटर की ट्रैकिंग किया करता था। इसका फायदा मुझे वहां मिला। मैं चढ़ाई के दौरान सात हजार पांच सौ मीटर बिना ऑक्सीजन सिलेंडर यूज किए येलो बेल्ट तक पहुंच गया था। ऐसे ऑक्सीजन की कमी नहीं पड़ी।

हिलेरी स्टेप पर सभी को लगा मौत हो जाएगी
हिम्मत ने बताया- हिलेरी स्टेप जो कि चोटी से ठीक पहले का सबसे खतरनाक हिस्सा होता है, वहां सभी की ऑक्सीजन लगभग खत्म हो गई थी। कई पर्वतारोही घबराहट में बैठ गए। एक ही समय में कई कैजुअल्टी होना, एक भयानक क्षण था। पहली बार एक साथ इतनी मौतें हुई थीं।
हिम्मत ने बताया कि मुझे एक दीर्घकालिक सूजन संबंधी बीमारी है, जो मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करती है। यह एक प्रकार की ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें शरीर की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली खुद ही अपने जोड़ों और हड्डियों पर हमला करने लगती है। इससे मुझे वहां कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन अब आने के बाद हाथों की अंगुलियों में थोड़ी झनझनाहट है।
