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झुंझुनूं कलेक्ट्रेट पर आशा सहयोगिनियों का प्रदर्शन:काम का दायरा तय करने, अधिकारियों की प्रताड़ना से मुक्ति की मांग

मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं के काम से जुड़ी आशा सहयोगिनियों ने झुंझुनूं जिला कलेक्ट्रेट पर प्रदर्शन किया। बड़ी संख्या में आशा सहयोगिनी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुईं। कलेक्टर के नाम ज्ञापन सौंपते हुए अपनी 10 सूत्री मांगों को जल्द लागू करने की मांग की।

आशाओं का कहना है कि सरकार और विभाग दोनों उनकी सेवाएं तो लेते हैं, लेकिन मान-सम्मान और सुविधा देने के मामले में लगातार उपेक्षा हो रही है। आशा सहयोगिनियों की ने ये शिकायतें और मांगें रखीं-

मुख्य काम मातृ-शिशु सेवा, लेकिन थोपे जा रहे अतिरिक्त भार- हमारा मूल काम मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएं देना है, लेकिन विभाग की ओर से कई ऐसे कार्यों में लगाया जा रहा है जो अधिकार क्षेत्र में नहीं आते। टीबी मरीजों के बलगम सैम्पल इकट्ठा करने से लेकर आयुष्मान भारत योजना के तहत आभा आईडी और कार्ड बनवाने तक का कार्य करवाया जा रहा है। इसके कारण न केवल मूल सेवाओं में बाधा आ रही है, बल्कि फील्ड में कई तकनीकी और सामाजिक परेशानियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
पंचायत सर्वे से लेकर डिजिटल कार्यों तक का भार- हाल ही में ग्राम पंचायत स्तर पर कराए जा रहे विभिन्न सर्वे और जनगणना जैसे कार्य भी करवाए जा रहे हैं। जबकि यह कार्य पंचायती राज या अन्य विभागों से संबंधित हैं। इन कार्यों के लिए किसी प्रकार का अतिरिक्त मानदेय या प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। दूसरी ओर, जब ऐसे कार्यों में देरी होती है तो अधिकारी नोटिस देने और सेवा से हटाने की धमकी देते हैं।
डॉक्टर-एएनएम की शर्तें और उत्पीड़न- जब किसी कार्य को तकनीकी कारणों से नहीं कर पातीं तो डॉक्टर और एएनएम क्लेम फॉर्म पर साइन नहीं करते। इससे मेहनताना अटक जाता है। यह स्थिति मानसिक प्रताड़ना की तरह है, जहां मजबूरी में हर वह कार्य करना पड़ता है जो कहा जाए, चाहे वह दायित्व से बाहर ही क्यों न हो।
मानदेय समय पर नहीं, 10% बढ़ोतरी भी लंबित- प्रतिमाह मिलने वाला मानदेय अक्सर समय पर नहीं मिलता। कई बार दो से तीन माह तक भुगतान लंबित रहता है, जिससे घर चलाना मुश्किल हो जाता है। विभाग ने 10 प्रतिशत मानदेय बढ़ाने की घोषणा की थी, लेकिन वह राशि आज तक खातों में नहीं पहुंची। आशा कार्यकर्ता कमला देवी ने कहा, “हम दिन-रात मेहनत करते हैं, गांवों में जाकर गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की देखरेख करते हैं, लेकिन जब अपने हक की बात करते हैं तो हमें नजरअंदाज कर दिया जाता है।”
न्यूनतम मानदेय 26 हजार की मांग- हमारा कार्य एएनएम और डॉक्टरों से कम नहीं है। कई बार तो गांवों में अकेले जाकर स्वास्थ्य सेवाएं देती हैं, जहां डॉक्टर या एएनएम नहीं पहुंचते। इसके बावजूद बहुत कम मानदेय दिया जा रहा है। न्यूनतम 26 हजार रुपए प्रति माह मानदेय देने की मांग की है, ताकि सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।
ड्यूटी समय निर्धारित करने की मांग- आशाओं की कोई निश्चित ड्यूटी समयावधि नहीं है। उन्हें कभी भी किसी भी समय बुला लिया जाता है। इससे उनका पारिवारिक जीवन भी प्रभावित हो रहा है। ड्यूटी का समय तय किया जाए और उसके बाद उन्हें काम के लिए बाध्य नहीं किया जाए।
आंदोलन की चेतावनी

आशा सहयोगिनियों ने स्पष्ट कहा कि यदि जल्द उनकी मांगों पर विचार नहीं किया गया और उन्हें राहत नहीं दी गई तो वे जिलेभर में बड़ा आंदोलन शुरू करेंगी। इसका जिम्मेदार जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग होगा। ज्ञापन में मांग की गई कि विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया जाए कि वे आशाओं को मूल कार्य से हटाकर अतिरिक्त कार्य न दें और किसी भी प्रकार की मानसिक प्रताड़ना से बचाएं।

Kashish Bohra
Author: Kashish Bohra

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